By Tricitynews
Chandigarh 13th
April:- आर्य समाज सेक्टर 19 सी का रामनवमी पर्व धूमधाम से संपन्न हो गया है। कार्यक्रम का शुभारंभ यज्ञ पूर्णाहुति एवं आशीर्वाद से प्रारंभ हुआ। स्थानीय कार्यकर्ता तथा आर्य भजन उपदेशक सुमित्र अंगिरस और महर्षि दयानंद पब्लिक स्कूल दरिया के विद्यार्थियों ने मधुर एवं मनमोहक भजन प्रस्तुत किए। वैदिक विद्वान नरेंद्र आहूजा ने प्रवचन के दौरान कहा कि मर्यादाओं का संकल्प कदापि टूटने नहीं देना चाहिए। वैदिक विचारों का नाम ही राम है। श्रीराम जी ने वैदिक विचारों का जीवन भर पालन किया। उन्होंने कहा कि श्री राम जनमानस में बसे हुए हैं। उन्हें मन मंदिर में स्थापित किया जाना चाहिए। यदि हम उनके अनुकूल जीवन जीते हैं तो वेदानुकूल यथावत पालन होगा। मन मंदिर में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को स्थापित करने पर भव्य मंदिर का निर्माण हो सकता है। इससे भौतिक मंदिर के निर्माण की आवश्यकता नहीं रह जाती है। उनकी मर्यादा के अनुकूल कार्य करने पर राम भक्त बन पाएंगे। उन्होंने कहा कि राम एक विचार का नाम है। जबकि रावण अमर्यादित का नाम है। विद्वता में रावण भी कम नहीं था परंतु वह दुर्गन और दुरव्यसनों से भरा हुआ था राम ने रावण पर विजय प्राप्त कर ली थी । इसलिए हमें भी द्वेष की भावना का त्याग करके अहंकार रूपी रावण का वध करना चाहिए। विश्व बंधुत्व की भावना लाकर ही राम मंदिर का निर्माण संभव है। इस मौके पर उपदेशक आचार्य रामदयाल ने कहा कि भारत का सौभाग्य है कि इस देश की धरती पर सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक ईश्वर से चार ऋषियों को चार वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ था। इन चार वेदों के विषय ज्ञान, कर्म, उपासना एवं विशिष्ट ज्ञान है। वेद ईश्वर से ही उत्पन्न हुए हैं। यह पौरूषेय रचना नहीं अपितु अपौरूषेय रचना है। वेदों के अतिरिक्त संसार के सभी ग्रन्थ मनुष्यों द्वारा रचित पौरूषेय रचनायें हैं। मनुष्य एकदेशी अनादि सूक्ष्म चेतन तत्व होने से अल्पज्ञ है।
उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी अधिक गुणवान, बल, शक्ति, श्रेष्ठ वेदों का आचरण करने में वह अग्रणीय थे। उनके राज्य में सबसे न्याय होता था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के राज्यकाल में सब को वेद पढ़ने और अपने जीवन में श्रेष्ठ गुणों को धारण करने का अधिकार था। लोग ऋषि मुनियों के आश्रम में जाकर निःशुल्क वेद वेदांगों का अध्ययन करते थे। जन्मना जातिवाद, दलित, अगड़े-पिछड़ों व अस्पर्शयता आदि की कोई समस्या नहीं थी। रामचन्द्र जी में किसी मनुष्य में धारण करने योग्य सभी गुण अपनी पराकाष्ठा में थे। देश व संसार ऋषि दयानन्द के ऋणी हैं जिनकी मेधा बुद्धि ने मध्यकाल में स्वार्थी लोगों द्वारा किये गये प्रक्षेपों को जाना, पहचाना व उन्हें पहचानने करने की कसौटी बताई।
उन्होंने कहा कि श्री रामचन्द्र जी के जीवन की जो घटना मनुष्यों को सबसे अधिक प्रभावित करती है वह उनका माता-पिता का आज्ञाकारी होना है। उन्होंने दिखा दिया कि पिता की आज्ञा के सम्मुख चक्रवर्ती राज्य भी महत्व नहीं रखता। पिता की आज्ञा दिये बिना केवल परिस्थितियों को जानकर राजा रामचन्द्र जी ने 14 वर्ष के लिये वन जाकर रहने का अपूर्व निर्णय किया था और वहां वह वनवासी लोगों के सम्पर्क में आये थे। उनका सहयोग करते व लेते हुए उन्होंने वहां की राज्य व्यवस्था को भी ठीक किया था। वनवास की अवधि में ही उन्होंने सुग्रीव के महाबली भाई बाली का वध किया था। बाली से उनका किसी प्रकार का वैरभाव नहीं था परन्तु बाली ने सुग्रीव के साथ जो अधर्मयुक्त व्यवहार किया था उसका दण्ड देने के लिये उन्होंने एक राजा होने के कारण दण्डित कर उसे प्राणदण्ड दिया था। जिन दिनों रामचन्द्र जी वन में थे, वहां ऋषि, मुनि, साधु, संन्यासी व साधक ईश्वर का साक्षात्कार करने की साधना करते थे। उनका समय ईश्वर विषयक ग्रन्थों के स्वाध्याय, साधना, ईश्वरोपासना एवं अग्निहोत्र यज्ञ आदि में व्यतीत होता था। राम चन्द्र जी के वन में आने से उन्होंने ऋषियों की रक्षा का व्रत लिया और वनों को प्रायः सभी राक्षसों से रहित कर दिया था। इससे सभी ऋषि मुनियों की सुरक्षित जीवन सुखमय उपलब्ध हुआ था और सबने रामचन्द्र जी को अपना आशीर्वाद दिया था जिससे आगे चलकर राम-रावण युद्ध में वह सफल हुए थे।
कार्यक्रम के दौरान आर्य समाज के प्रधान डॉ. अजय गुप्ता, मंत्री अनिल कुमार त्यागी, रीता चावला, अनिल भल्ला, प्रभा पुरी, सुरेंद्र भल्ला, प्रोमिला भसीन, डॉ. विनोद कुमार शर्मा, अशोक आर्य, धर्मवीर आर्य सहित चंडीगढ़ पंचकूला और मोहाली की आर्य समाज एवं शिक्षण संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे।